About the Book
प्रस्तुत पुस्तक में भारत की सामयिक सामाजिक समस्याओं का समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में परीक्षण करने हेतु एक विनम्र प्रयास किया गया है। यह पुस्तक समाज-विज्ञान के क्षेत्र में एक सुस्थापित पाठ्य-पुस्तक का रूप ग्रहण कर चुकी है। न केवल समाज-विज्ञान में स्नातक एवं परास्नातक पाठ्यक्रमों के अध्ययनरत छात्रों, बल्कि प्रतियोगी परीक्षाओं, विशेषतौर पर विभिन्न सिविल सेवा परीक्षाओं की तैयारी में रत हजारों आकांक्षियों के बीच यह पुस्तक एक मानक एवं अधिकृत स्त्रोत के रूप में स्थापित हो चुकी है। पुस्तक में संदर्भ-विशिष्ट पद्धति के उपयोग के साथ समस्याओं के विश्लेषण में संरचनात्मक व उप-सांस्कृतिक कारकों के महत्व पर बल दिया गया है।
पुस्तक के इस संशोधित संस्करण में न केवल कुछ नयी समस्याओं का विश्लेषण जोड़ा गया है, बल्कि पुराने सभी अध्यायों में यथासंभव नवीनतम आंकड़ों/सूचनाओं को भी उपलब्ध करवाया गया है। इस नवीन संस्करण के लिए अधिकाधिक सामग्री को समाहित करने के उद्देश्य से इसे 25 अध्यायों तक विस्तारित कर दिया गया है, जिसमें कुछ समकालीन समस्याओं पर की गई परिचर्चाओं को भी स्थान प्रदान किया गया है जैसे - आॅनर किलिंग, एसिड अटैक, कृषि-संकट एवं किसानों द्वारा आत्महत्या, साइबर क्राइम, घरेलू हिंसा, वृद्धावस्था एवं वृद्धों के साथ दुर्व्यवहार, जनजातीय असंतोष तथा वैश्वीकरण एवं उपभोक्तावाद।
Contents
• सामाजिक समस्याएं : अवधारणा और उपागम
• निर्धनता
• बेरोज़गारी
• जनसंख्या विस्फोट
• वृद्धावस्था और वृद्धों से दुर्व्यवहार
• सांप्रदायिकता, धर्म-निरपेक्षता तथा क्षेत्रीयकरण
• पिछड़ी जातियां, जनजातियां और वर्ग
• युवा असन्तोष और आन्दोलन
• बाल-दुव्र्यवहार और बाल-श्रम
• महिलाओं के विरुद्ध हिंसा
• निरक्षरता
• नगरीकरण
• वैश्वीकरण तथा उपभोक्तावाद
• अपराध और अपराधी
• बाल अपराध
• घरेलू हिंसा
• मद्यपान
• मादक पदार्थों का दुरुपयोग एवं व्यसन
• एड्स
• आतंकवाद
• भ्रष्टाचार
• जनजातीय असंतोष
• बंधुआ मज़दूर
• कृषि-संकट एवं किसानों की आत्महत्या
• कालाधन
About the Author / Editor
राम आहूजा राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर के समाजशास्त्र विभाग के प्रोफेसर व विभागाध्यक्ष एवं भारतीय समाज विज्ञान शोध परिषद (ICSSR) के सीनियर फेलो रहे हैं। दीर्घ शैक्षणिक व शोध अनुभव के आधार पर उनकी अनेक पुस्तकें और शोध प्रबन्ध प्रकाशित हो चुके हैं। विभिन्न राष्ट्रीय और प्रादेशिक अकादमियों और प्रशासकीय प्रशिक्षण संस्थाओं में वे दो दशकों तक अतिथि-वक्ता रहेे।