महिला दलित और आदिवासी असमानताएँ (Mahila, Dalit Aur Aadivaasi Asamantaayein (Reader-3)

सम्पादन : हृदय कान्त दीवान | संजय लोढ़ा | अरुण चतुर्वेदी | मनोज राजगुरु (Hriday Kant Dewan, Sanjay Lodha, Arun Chaturvedi, Manoj Rajguru)

महिला दलित और आदिवासी असमानताएँ (Mahila, Dalit Aur Aadivaasi Asamantaayein (Reader-3)

सम्पादन : हृदय कान्त दीवान | संजय लोढ़ा | अरुण चतुर्वेदी | मनोज राजगुरु (Hriday Kant Dewan, Sanjay Lodha, Arun Chaturvedi, Manoj Rajguru)

-20%1116
MRP: ₹1395
  • ISBN 9788131614518
  • Publication Year 2025
  • Pages 299
  • Binding Hardback
  • Sale Territory World

About the Book

आज के संदर्भ में असमानता एक अहम मुद्दे के रूप में उभरी है। राष्ट्रों, क्षेत्रों, कौमों और व्यक्तियों के बीच असमानताओं के बदलते संदर्भ पर न सिर्फ विचार हो रहा है वरन् कई प्रकार के तथ्य आधारित शोध भी विमर्श को समृद्ध कर रहे हैं। 
‘महिला, दलित और आदिवासी असमानताएँ’ उन स्थितियों का आकलन है, जो भारतीय समाज में चली आ रही सामाजिक-आर्थिक विषमताओं का प्रतिबिम्बन हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के होते हुए भी हाशिए पर रह रहे विभिन्न समूह अपनी परम्परागत वंचनाओं से घिरे हैं। अल्पसंख्या और अभिजनवादी राजनीतिक संस्कृति के कारण संविधान के होने के बावजूद लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं निष्प्रभावी हो गई हैं। खण्ड एक में सम्मिलित लेख भारत में महिला विषमताओं से जुड़े आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और मानवीय संवेदनाओं के प्रश्न और उनके जीवन पर प्रभाव, जिसका अहसास हर जगह होता है, की उदाहरण सहित व्याख्या करते हैं। दूसरा खण्ड दलित विषमताओं पर है, जिसमें दलितों के साथ छुआछूत के मसले का विश्लेषण है। दलित राजनीति के स्वरूप व उनके अपने अधिकारों के बारे में संघर्ष की व्याख्या कई रोचक बातें सामने लाती है। तीसरे खण्ड के चार आलेख भारतीय जनजातियों और अतिपिछड़ों की विषमताओं, उनकी पहचान व उनके प्रति धारणा से जुड़े विमर्श पर हैं। हालांकि ‘आदिवासी’ शब्द पहले से रहने वालों के अर्थ से जुड़ा है लेकिन इस समूह को ठीक से परिभाषित नहीं कर पाता। कानूनी रूप से ये अभिव्यक्ति अनुसूचित जनजाति के लिए है और यहाँ जिसे ‘जनजाति’ कहा गया है, उनकी विशेषता अलग-थलग वन क्षेत्र में रहने की है और उनके जीवन की निर्भरता वनों पर सर्वाधिक है। दूर-दराज स्थानों पर रहने के कारण ये शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सुविधाओं से वंचित हैं। ये छुआछूत से दूर हैं किन्तु गरीबी से इनका पीछा नहीं छूटा है। बहस मुख्य रूप से यह है कि क्या इनकी अपनी पहचान बनाए रखते हुए इन्हें विकास की प्रक्रिया से जोड़ा जाए या फिर इन्हें मुख्यधारा में सम्मिलित कर लिया जाए। यह संकलन भारत में विशेष असमानताओं से ग्रसित समूहों के बारे में है। बढ़ती असमानताओं के दौर में इन पर सक्रिय कार्य करने की आवश्यकता स्पष्ट उभरती है।


Contents

खण्ड 1 भारतीय असमानताएँ: महिलाएँ
1 भारतीय नारीवाद और भिन्नता का प्रश्न: वर्ग, जाति और जेंडर का अन्तःसम्बन्ध
विजय कुमार झा
2 कब तक हाशिए पर रहना होगा!    
विमल थोरात
3 दलित महिलाओं की त्रासदी    
जितेन्द्र प्रसाद
4 महिला अधिकार: संविधान तथा सरकारें    
शील के. असोपा
5 समता आधारित राजनीति वेफ बिना स्त्राी मुक्ति असम्भव
निशा शिवूरकर
6 नारीवाद के मुद्दे
कमला भसीन
7 भारत में महिला सशक्तिकरण: 73वें तथा 74वें संवैधानिक संशोधन के विशेष सन्दर्भ में
बी.एम. शर्मा

खण्ड 2 भारतीय असमानताएँ: दलित

8 गोमांस सेवन: अस्पृश्यता का मूलाधार    
भीमराव अम्बेडकर
9 कांशीराम और उत्तर-अम्बेडकर दलित-विमर्श    
अरविन्द कुमार
10 निर्बलों के लिए भेदभाव    
पी. साईंनाथ
11 लोकतंत्र का भिक्षु गीत: अति-उपेक्षित दलितों के अध्ययन की एक प्रस्तावना
बद्री नारायण
12 बंसोड़, बाँस और लोकतंत्र
रमाशंकर सिंह
13 दलित उपनिवेशवादी इतिहास और ब्राह्मणवादी व्याख्या    
एस.एल. दोषी
14 दलित की चिन्ता    
योगेन्द्र यादव
15 दलित दशा और दिशा    
ओमप्रकाश वाल्मीकि
16 दलित वर्ग एवं दलित नेतृत्व    
भगवान दास
17 पंचायती राज का व्यावहारिक स्वरूप: दलित सन्दर्भ में    
जॉर्ज मैथ्यू एवं रमेश सी. नायक
18 भारतीय सामाजिक यथार्थ और दलितों वेफ मानवाधिकार का प्रश्न    
पी.जी. जोगदन्ड
19 भारतीय राजनीति का स्याह दलित चेहरा    
शेफाली बार्थोनिया
20 दलित सोच: शोषित समाज की पुनर्रचना का आह्नान    
नरेश भार्गव
खण्ड 3 आदिवासी और असमानता

21 भारतीय जनजातियों के सन्दर्भ में वुछ विचार    
विनय कुमार श्रीवास्तव
22 विद्यालयों में दलित या आदिवासी बच्चा होने का क्या अर्थ है?: छः राज्यों के गुणात्मक अध्ययन का संश्लेषण
विमला रामचन्द्रन एवं तारामणि नाओरेम
23 आदिवासी नक्सलवादी और भारतीय लोकतंत्र
रामचन्द्र गुहा
24 पिछड़ी जातियों की उत्तर-मण्डल राजनीति
ज्योति मिश्रा एवं आशीष रंजन




About the Author / Editor

हृदय कान्त दीवान शिक्षा व समाज के अंतर्संबंध के क्षेत्र मे कार्यरत हैं। वे एकलव्य फाउंडेशन (मध्य प्रदेश) के संस्थापक सदस्य थे और विद्या भवन सोसायटी (राजस्थान) और अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय (बेंगलूरु) के साथ काम कर चुके हैं। वे शिक्षा प्रणाली में सामग्री और कार्यक्रमों के विकास और शिक्षा में अनुसंधान में सक्रिय हैं।
संजय लोढ़ा, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त आचार्य। वर्तमान में जयपुर स्थित विकास अध्ययन संस्थान में भारतीय सामाजिक विज्ञान शोध परिषद् के वरिष्ठ फैलो के रूप में संबद्ध।
अरुण चतुर्वेदी, वरिष्ठ राजनीति शास्त्री एवं मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त आचार्य।
मनोज राजगुरु, विद्या भवन रूरल इंस्टीट्यूट, उदयपुर में राजनीति विज्ञान के सह आचार्य।


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