भारतीय सामाजिक व्यवस्था (समाजशास्त्र रीडर - IV) Indian Social System (Hindi)

नरेश भार्गव, वेददान सुधीर, अरुण चतुर्वेदी और संजय लोढ़ा (Naresh Bhargava, Veddan Sudhir, Arun Chaturvedi and Sanjay Lodha)

भारतीय सामाजिक व्यवस्था (समाजशास्त्र रीडर - IV) Indian Social System (Hindi)

नरेश भार्गव, वेददान सुधीर, अरुण चतुर्वेदी और संजय लोढ़ा (Naresh Bhargava, Veddan Sudhir, Arun Chaturvedi and Sanjay Lodha)

-15%1101
MRP: ₹1295
  • ISBN 9788131611760
  • Publication Year 2021
  • Pages 428
  • Binding Hardback
  • Sale Territory World

About the Book

भारतीय समाज का स्वरूप समय, परिस्थिति और आवश्यकतानुसार बदलता रहा है। सामाजिक परिवर्तन की पृष्ठभूमि में यही भावना निहित है कि समाज की कोई भी अवस्था स्थाई नहीं है। सारी व्यवस्थाएँ परिवर्तनशील हैं। अनेक ऐसे कारक हैं, जो समाज की व्यवस्थाओं को प्रभावित करते हैं। परिवर्तन की इस प्रक्रिया और प्रकृति के आधार पर कई चिंतकों ने कई अवधारणाओं को प्रस्तुत किया है। ये अवधारणाएँ ना केवल आधुनिकता से जुड़ी थीं, बल्कि इनका सम्बन्ध जाति और वर्ग व्यवस्था से भी रहा। जाति, वर्ग, धर्म, समाज, परम्पराओं, मान्यताओं, विश्वासों में आने वाले बदलावों को इन अवधारणाओं के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है, जिसमें आधुनिकीकरण, संस्कृतीकरण, पश्चिमीकरण, लौकिकीकरण, धर्मनिरपेक्षीकरण आदि प्रमुख हैं। भारतीय समाज में गैर-बराबरी भी अन्य समाजों की तरह ही विद्यमान है। गैर-बराबरी के अपने ही स्त्रोत भी हैं, स्वरूप भी हैं और प्रभाव भी। जाति, वर्ग, पिछड़े वर्ग, आदिवासी और दलित तथा अधीनस्थ समूह सम्पूर्ण गैर-बराबरी के अलग-अलग स्थापित स्वरूप हैं। इस पूरी व्यवस्था को समझे बिना भारतीय समाज को नहीं समझा जा सकता है। भारतीय समाज के विविध पक्षों के साथ विभिन्न नृजातिय समूह भी जुड़े हुए हैं। आदिवासी समाज की विशिष्ट आकृतियों, विशिष्ट सामूहिक जीवन और विशिष्ट जीवन शैली का भारतीय समाज व्यवस्था में अपना अलग ही महत्व है। सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन की भिन्नताओं के कारण इन अनुसूचित जनजातियों की पहचान अलग है। इन आदिवासी समाजों की अपनी समस्याएँ हैं। इस संकलन में भारतीय समाज से जुड़े इन्हीं सभी सन्दर्भों को विभिन्न लेखों के माध्यम से प्रस्तुत किया जा रहा है।


Contents

1 सामाजिक परिवर्तन / राम आहूजा
2 सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रियाएं : संस्कृतीकरण, पश्चिमीकरण एवं आधुनिकीकरण / एन.के. सिंघी
3 भारतीय परम्परा का आधुनिकीकरण : विश्लेषण / योगेन्द्र सिंह
4 पाश्चात्य प्रभाव एवं सांस्कृतिक आधुनिकीकरण / योगेन्द्र सिंह
5 संस्कृतीकरण / एम.एन. श्रीनिवास
6 जनसंचार के साधन और सामाजिक सांस्कृतिक-परिवर्तन / नरेश भार्गव
7 लौकिकीकरण / एम.एन. श्रीनिवास
8 धर्मनिरपेक्षीकरण / एम.एन. श्रीनिवास
9 भारत में सामाजिक स्तरीकरण के उभरते प्रतिमान / के.एल. शर्मा
10 जाति और राजनीति के विश्लेषण में संख्या की परिकल्पना / दीपांकर गुप्ता
11 प्रदत्त संस्तरण : समकालीन भारत में जाति तथा उसकी पुनर्स्थापना / सुरिंदर एस. जोधका
12 नस्ल के आईने में जाति का अक्स / धीरूभाई शेठ
13 अन्य पिछड़े वर्ग / एस.एल. दोषी एवं प्रकाश चन्द्र जैन 
14 सामाजिक स्तरीकरण तथा गतिशीलता / एस.एल. दोषी एवं प्रकाश चन्द्र जैन
15 वर्ग संरचना / एस.एल. दोषी एवं प्रकाश चन्द्र जैन
16 आदिवासी / जवाहर लाल नेहरू
17 भारत के आदिवासी : संक्षिप्त परिचय / बी.एस. गुहा
18 जनजातीय सामाजिक संगठन / डी.एन. मजूमदार एवं टी.एन. मदान
19 भारतीय जनजातियों के सन्दर्भ में कुछ विचार / विनय कुमार श्रीवास्तव
20 क्या हम उन्हें सचमुच चिड़ियाघर में रखना चाहते हैं? / वैरियर एल्विन


About the Author / Editor

नरेश भार्गव, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में तीन दशकों से अधिक कार्य। राजस्थान समाजशास्त्र परिषद् की पत्रिका के पूर्व संपादक। सामाजिक आन्दोलन, नागर समाज, जाति व्यवस्था, राजस्थान की सामाजिक व्यवस्था और राजनीतिक समाजशास्त्र आपके शोध के विशेष क्षेत्र रहे हैं। वर्तमान में जनबोध संस्थान, उदयपुर के अध्यक्ष।

वेददान सुधीर, विद्या भवन रूरल इंस्टिट्यूट, उदयपुर के राजनीतिक विज्ञान विभाग में पूर्व प्राध्यापक। भारत के संविधान और राजनीतिक व्यवस्था पर शोध। ‘मूल प्रश्न’ पत्रिका के संस्थापक संपादक। वर्तमान में अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के ‘अनुवाद पहल’ कार्यक्रम में योगदान दे रहे हैं।

अरुण चतुर्वेदी, कॉलेज शिक्षा निदेशालय (राजस्थान सरकार), विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन और मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के राजनीति विज्ञान विभाग में प्राध्यापक। सुखाड़िया विश्वविद्यालय के सामाजिक और मानविकी महाविद्यालय तथा विधि महाविद्यालय के पूर्व अधिष्ठाता। भारतीय विदेश नीति, अंतर्राष्ट्रीय कानून, राजनीतिक चिंतन और भारतीय राजनीतिक व्यवस्था उनके शोध और लेखन के विशेष क्षेत्र रहे हैं। वर्तमान में अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के ‘अनुवाद पहल’ कार्यक्रम में योगदान दे रहे हैं।

संजय लोढ़ा, कॉलेज शिक्षा निदेशालय (राजस्थान सरकार) और मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के राजनीति विज्ञान विभाग में प्राध्यापक व सामाजिक और मानविकी महाविद्यालय तथा स्नातकोत्तर अध्ययन विभाग के पूर्व अधिष्ठाता। आप दो दशकों से अधिक समय से दिल्ली स्थित विकासशील समाज अध्ययन केंद्र के लोकनीति नेटवर्क से जुड़े हुए हैं। लोकतान्त्रिक विकेंद्रीकरण, मतदान अध्ययन, अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध और राजस्थान की राजनीति उनके शोध और लेखन के विशेष क्षेत्र रहे हैं। वर्तमान में अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के ‘अनुवाद पहल’ कार्यक्रम से जुड़े हुए हैं।


Your Cart

Your cart is empty.