महिला सशक्तीकरण और नारीवाद (MAHILA SASHAKTIKARAN AVAM NARIVAD – Women Empowerment and Feminism) Hindi

पी.डी. शर्मा (P.D. Sharma)

महिला सशक्तीकरण और नारीवाद (MAHILA SASHAKTIKARAN AVAM NARIVAD – Women Empowerment and Feminism) Hindi

पी.डी. शर्मा (P.D. Sharma)

-15%846
MRP: ₹995
  • ISBN 9788131608913
  • Publication Year 2017
  • Pages 222
  • Binding Hardback
  • Sale Territory World

About the Book

यह कृति महिला सशक्तीकरण के उस विवादास्पद विषय की एक विस्फोटक विवेचना है जिस पर भारत में आम राय बनने में अभी पूरी शताब्दी लग सकती है। सदियों से पतिभक्ति में दीक्षित भारतीय नारी अभी तो ‘मुक्ति’ का संघर्ष लड़ रही है। इस मुक्ति के लिए उसे शक्ति चाहिए, जिससे वह उस पश्चिमी नारी के समकक्ष खड़ी हो सके जो अब शक्ति से आगे ‘तृप्ति’ का संघर्ष लड़ना चाहती है। भक्ति, मुक्ति, शक्ति और तृप्ति की ये ‘चार लहरें’ नारी शक्ति को एक अभिव्यक्ति देती है।
सिमन डी बोउवा (Simone de Beauvoir) का कहना है कि महिलायें पैदा नहीं होती, बल्कि बनाई जाती हैं, वे इसे धर्म, संस्कृति और पैट्रिआर्की (patriarchy) का एक षड्यंत्र मानती हुई, विवाह और परिवार की दोनों संस्थाओं को नये ढंग से गढ़ना चाहती है। यह नारीवादी सशक्तीकरण आज के विज्ञान के युग में इस पुरुष-प्रधान संरचना को किस तरह ध्वस्त करना चाहता है, इसी का एक सघन विश्लेषण प्रस्तुत पुस्तक के विभिन्न अध्यायों में देखा जा सकता है।
पहला अध्याय नारी मुक्ति के संघर्ष की चार लहरों पर एक विहंगम दृष्टि डालता है। दूसरे अध्याय में नारी जीवन पर पुरुष की उस खण्डित दृष्टि की विवेचना की गई है, जो नारी को महिला न मानकर केवल ‘रमणी’ और ‘जननी’ के रूप में ही देखती रही है। इसी कुंठित दृष्टि के कारण स्त्री की देह नाना प्रकार की असुरक्षाओं और जोखिमों में उलझी हुई नजर आती है। पश्चिम का नारीवादी चिन्तन इसे सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में न देखकर केवल विज्ञान की दृष्टि से देखता है।
पुस्तक के चार अध्याय विवाह और परिवार के इसी नारीवादी विरोध, उभरते हुए वैज्ञानिक विकल्पों और सहचर्य की सैक्स शिक्षा द्वारा वैवाहिक हिंसा के समाधानों पर एक समालोचनात्मक विवेचना प्रस्तुत करते हैं। बाजारवाद, फैशन, विज्ञापन, कानून तथा मार्क्सवादी विचारधारा इस महिला को किस प्रकार की शक्ति दे रही है और यह सशक्तीकरण, स्वतंत्रता, समानता और विज्ञान की सुविधाओं के साथ कैसे समन्वित किया जा सकता है, इसकी समीक्षा भी उत्तरार्द्ध के तीन अध्यायों में नारीवाद के भविष्य के प्रश्न उठा रही है। अंतिम अध्याय में परिपूर्णता का स्त्री विमर्श नारीवादी तर्कों पर एक संतुलित सोच विकसित करना चाहता है, जो प्रस्तुत कृति के प्रणयन का एक उद्देश्य और केन्द्रीय विचार भी है।





Contents

•    महिला मुक्तिकरण का नारीवादी संघर्ष: सशक्तीकरण की चार यूरोपीय लहरें
•    नारी जीवन पर खण्डित दृष्टियां: महिलाएं पैदा नहीं होती, बनाई जाती हैं
•    असुरक्षा के जोखिमों से घिरी ‘स्त्री देह’
•    विवाह और परिवार की संस्थाओं का नारीवादी विरोध: पुरुष वर्चस्व का एक षड्यंत्र
•    यौन सहचर्य की सैक्स शिक्षा वैवाहिक हिंसा घटाती है
•    विज्ञान के युग के नारीवादी विकल्प   
•    सशक्तीकरण का नारीवाद: उपभोक्तावादी और मार्क्सवादी दृष्टियां
•    विरोधाभासी पूर्णता का स्त्री विमर्श: यहां से कहां


About the Author / Editor

पी.डी. शर्मा (जन्म 1933) राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर में राजनीति विज्ञान और लोक प्रशासन विभागों के विभागाध्यक्ष रहे हैं। हिन्दी साहित्य, इतिहास और राजनीति विज्ञान विषयों में विश्वविद्यालय के स्वर्ण पदक विजेता डा. शर्मा ने मिनसोटा विश्वविद्यालय, मिनियापोलिस से एम पी ए और पीएच डी की उपाधियाँ अर्जित की हैं। वे नार्थ कैरोलिना और मिनसोटा के अमेरिकी परिसरों पर एक विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में नाॅन वेस्टर्न स्टडीज के क्षेत्र में अध्ययन, अध्यापन और शोधकार्य कर चुके हैं।


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