About the Book
नगरीय समाजशास्त्र पुस्तक महानगरों की समस्याओं को देखने-परखने और वैज्ञानिक विश्लेषण करने की खोजी और शोध-दृष्टि है, जिसके द्वारा नगर की विभिन्न समस्याओं को ज्ञात करने हेतु समस्याओं की तह तक जाने का प्रयास किया गया है। नगर-संस्कृति व सभ्यता के विकास में हजारों वर्ष लगे हैं। तथा नगरों की स्थापना में नदी, झील और समुद्र का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। विभिन्न काल-खण्डों में आर्थिक व सामाजिक समस्याओं के स्वरूप बदले हैं तथा इनके ढ़ाचें में परिवर्तन होता रहा है। एक काल-खण्ड से दूसरे काल-खण्ड में प्रवेश से विकास व समस्याओं के नये आयाम सामने आते हैं, वहीं अतीत की नगरीय समस्याएं नये स्वरूप में उभरती हैं।
इस पुस्तक में विभिन्न समस्याओं के केन्द्र में अतीत और वर्तमान का अर्थ-तंत्र है, जैसे - गरीब और गरीबी को शोध-दृष्टि से विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है। नगरीय भौतिक-संस्कृति में अस्मिता और अस्तित्व से जुड़ी समस्याओं की समाजशास्त्रीय ढंग से विवेचना की गई है। नये सन्दर्भों में नगरीय-पारिस्थितिकी को उप-नगरों के विकास में रखकर देखा गया है तथा नगरीकरण की प्रक्रिया और नगरवाद की पृष्भूमि पर उभरती नई सोच व मानसिकता को नव-आर्थिक उपनिवेशवाद एवं उत्तर-आधुनिकतावाद के सन्दर्भ में परखने का यत्न किया गया है।
पुस्तक के सभी अध्यायों में शोध-दृष्टि और विषय की नवीन-सामग्री को समाहित किया गया है। साथ ही महानगरों की गंभीर समस्याओं - गरीबी, वृद्ध जीवन, पर्यावरण, अपराध, जनसंख्या, बेरोजगारी, क्षेत्रीयतावाद, सैक्स, युवा-स्ट्रेस, आत्महत्या आदि - के विभिन्न आयामों पर पुस्तक में चर्चा की गई।
Contents
1 नगर विकास व प्रगति की यात्रा
2 भारत में नगर क्यों और कैसे बसे?
3 नगरीकरण की प्रक्रिया और नगरवाद
4 नगरीकरण: बीमार-व्यवस्था के परिणाम
5 नगर और पारिस्थितिकी
6 नगरों में नारकीय मलिन बस्तियां
7 टूटते-बनते नगरीय परिवार
8 गरीब और गरीबी (निर्धनता)
9 नगरों में जाति और वर्ग का अस्तित्व
10 नगरीय जीवन-संस्कृति: अस्मिता एवं अस्तित्व
11 वृद्ध जीवन के आयाम और असमानताएं
12 पर्यावरण की चुनौती और समाज
13 अपराध की नवीनतम प्रवृत्तियों के आयाम
14 उच्चवर्गीय श्वेत-वस्त्रधरी अपराध
15 वैयक्तिक विघटन: एक गंभीर समस्या
16 जनसंख्या की समस्याओं के आयाम
17 बेरोजगारी: अतीत का दंश
18 महानगरों में जन्मी क्षेत्रीयतावादी प्रवृत्ति
19 महानगरों में सैक्स की दुनिया
20 युवा-स्ट्रेस, तनाव, कुंठा, अवसाद और प्रतिबल (ट्राउमा)
21 आत्महत्या क्यों?
About the Author / Editor
वी.एन. सिंह ने लखनऊ विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. (समाजशास्त्र) की उपाधी प्राप्त की है। आपकी 42 पुस्तकें एवं 300 से अधिक आलेख एवं शोध-पत्र प्रकाशित हुए हैं। आप उत्तर प्रदेश समाजशास्त्रीय परिषद के संस्थापक संयुक्त मंत्री, पूर्व सदस्य, पाठ्यक्रम समिति, कानपुर विश्वविद्यालय एवं कानपुर विश्वविद्यालय की अनेक समितियों में विशेषज्ञ रहे हैं। आप रीडर एवं अध्यक्ष, समाजशास्त्र विभाग, दयानन्द ब्रजेन्द्र स्वरूप पी.जी. काॅलेज, कानपुर विश्वविद्यालय भी रहे हैं।
जनमेजय सिंह कानपुर विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. (समाजशास्त्र) की उपाधी ग्रहण करने के पश्चात् शैक्षिक कार्यों में संलिप्त रहे हैं। आप अनेक पुस्तकों के सह-लेखक भी हैं।