धर्मनिरपेक्ष भारतः संविधान के आइने की नजर से (आजादी से अमृतकाल तक) DHARMNIRPEKSH BHARAT: SAMVIDHAN KE AAINE KI NAZAR SE (SECULAR INDIA)

एम.पी.दुबे (M.P.Dube)

धर्मनिरपेक्ष भारतः संविधान के आइने की नजर से (आजादी से अमृतकाल तक) DHARMNIRPEKSH BHARAT: SAMVIDHAN KE AAINE KI NAZAR SE (SECULAR INDIA)

एम.पी.दुबे (M.P.Dube)

-20%1436
MRP: ₹1795
  • ISBN 9788131614105
  • Publication Year 2024
  • Pages 414
  • Binding Hardback
  • Sale Territory World

About the Book

धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा बहुत जटिल है। यह एक अनेकार्थक शब्द है। यह इस विश्वास से संबंधित है कि व्यक्ति के कार्य और उसके निर्णय धार्मिक विश्वास और प्रभाव की अपेक्षा विवेक और व्यवहार बुद्धि पर आधारित होने चाहिए। धर्मनिरपेक्षता उदारवादी लोकतंत्र का महत्वपूर्ण तत्व है। भारत में धार्मिक स्वतंत्रता, सहिष्णुता तथा सहअस्तित्व के परंपरागत मूल्यों ने भारत में उदार लोकतांत्रिक संविधानवाद को अपनाए जाने का आधार प्रदान किया। भारत के लोगों को स्वतन्त्रता, समानता, न्याय तथा गरिमा दिलाने के लिए, और राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने के लिए, धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक व्यवस्था अपनायी गयी है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता सर्वधर्म समभाव तथा समान सुअवसर के सिद्धांत पर आधारित है। संविधान सभी धर्मों को समान आदर देने की बात करता है, सभी व्यक्तियों को धर्म की स्वतंत्रता देता है, साथ ही अल्पसंख्यक वर्गों के हितों को संरक्षण प्रदान करता है। प्रस्तुत पुस्तक में संवैधानिक उपबन्धों तथा उनके क्रियान्वयन का उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के प्रकाश में विवेचन करने का प्रयास किया गया है। अल्पसंख्यकों के अधिकारों का संरक्षण, इस्लामोफोबिया, सामाजिक न्याय और जाति आधारित आरक्षण, एक समान सिविल संहिता, धर्मांतरण, लव जेहाद, गौहत्या, सम्प्रदायवाद तथा साम्प्रदायिक हिंसा आदि मुद्दों का गहराई से विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है। इस पुस्तक में लेखक ने धर्मनिरपेक्षता से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए जरूरी सम्यक दृष्टि विकसित करने की गंभीर चेष्टा की है। इस बात पर जोर दिया गया है कि धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक सिद्धांतों को व्यवहार में लागू करने के लिए एक ऐसी राजनीतिक संस्कृति विकसित करने की आवश्यकता है जिसमे जनता में सहयोग, विश्वास और भारतीयता का भाव तथा सरकार में सर्वधर्म समभाव, संवैधानिक नैतिकता तथा जनसेवा का भाव विकसित हो सके।


Contents

1 धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा
2 भारत में धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक तथा दार्शनिक आधार
3 भारतीय संविधान और सर्वधर्म समभाव तथा समान सुअवसर का संकल्प
4 अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण
5 नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने की कशमकश
6 समानता और सामाजिक न्याय पर आधारित व्यवस्थाः एक वृहद् धर्मनिरपेक्ष अभ्युत्थान
7 भारत में धर्मप्रचार और धर्मान्तरण की कलह
8 हिन्दुत्व के पहचान की प्रतीक गौ-माता और गोवध का मुद्दा
9 बंधुता को आहत करती साम्प्रदायिक हिंसा


About the Author / Editor

एम-पी- दुबे ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर तथा अध्यक्ष, राजनीतिशास्त्र विभाग_ संकायाध्यक्ष कला_ निदेशक, गांधी चिंतन और शांति अध्ययन संस्थान आदि पदों के दायित्व का निर्वहन किया है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूर्व आपने कुमाऊँ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष राजनीतिशास्त्र के पद पर सेवा की है। डॉ- दुबे ने कुलपति, उत्तर प्रदेश मुक्त विश्वविद्यालय, इलाहाबाद का कार्यकाल भी सफलतापूर्वक संपन्न किया। 44 वर्षों के विश्वविद्यालय शिक्षण कार्य से 2018 में सेवानिवृत्ति के पश्चात् वे अकादमिक लेखन कार्य में संलग्न रहे। आपने 11 पुस्तकों का लेखन तथा संपादन किया है तथा आपके सौ से ज्यादा शोध लेख देश-विदेश की विभिन्न शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। आपकी हाल के वर्षों में प्रकाशित पुस्तकों में, गांधीः प्रैक्टिकल आइडेलिज्म एंड स्ट्रेटेजीज ऑफ इनक्लूजन तथा सोशल जस्टिसः डिस्ट्रिब्यूटिव प्रिंसिपल्स एण्ड बियोंड विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, स्टेट यूनिवर्सिटी संडिएगों, कोलंबिया यूनिवर्सिटी, कौला लम्पुर आदि विश्वविद्यालयों में अकादमिक गतिविधियों में भाग लिया। शिक्षा क्षेत्र में विशेष योगदान तथा नेतृत्व प्रदान करने और कुशल प्रशासन के लिये प्रो- दुबे को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।


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