About the Book
प्रस्तुत संकलन भारत में प्रशासनिक परिवर्तन के कतिपय उल्लेखनीय आयामों पर संकेन्द्रित है। विभिन्न प्रशासनिक संस्कृतियों के संश्लेषण के फलस्वरूप विकसित वर्तमान प्रशासनिक व्यवस्था में सभी कालखण्डों की प्रशासनिक विशेषताओं की विद्यमानता सुस्पष्ट है। आज भी टोडरमल के राजस्व प्रशासन की झलक हमारी ग्रामीण स्तरीय राजस्व प्रशासनिक व्यवस्था पर दिखाई देती है। दूसरी ओर, सचिवालय, निदेशालय, ज़िलाधीश कार्यालय, पुलिस प्रशासन, न्यायिक व्यवस्था, अखिल भारतीय सेवाएं आदि प्रशासनिक विशेषताएं ब्रिटिश काल की देन हैं। इनमें आवश्यकतानुसार परिवर्तन हुए हैं, किन्तु इन संरचनाओं की मूलभूत प्रकृति अपने ऐतिहासिक स्वरूप से एकात्मकता लिये हुए हैं। कई परिवर्तन ऐसे हुए हैं जो स्वतन्त्रता के पश्चात् अवतरित जनतंत्रात्मक परिप्रेक्ष्य के फलस्वरूप हैं, जैसे नियोजन व्यवस्था, पंचायती राज, निर्वाचित व आधुनिकीकृत नगरीय विकास संस्थाएं, सूचना का अधिकार, प्रतिनिध्यात्मक अधिकारी-तंत्र, राज्य सेवाएं, स्थानीय सेवाएं, विकास प्रशासन का विशाल तंत्र, विराट वित्तीय प्रशासन आदि।
प्रशासन के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में इस तंत्र की प्रकृति को सुविधापूर्वक समझने हेतु प्रस्तुत ग्रन्थ में विभिन्न वरिष्ठ व अनुभवी प्रशासकों एंव अन्य विद्वानों के लेखों का संकलन प्रस्तुत किया गया है। ये परिवेश एवं प्रकृति, प्रशासनिक संवेदनशीलता तथा विकेन्द्रित व्यवस्था से संबंधित है। इनके अध्ययन से संवैधानिक, राजनीतिक एवं आर्थिक परिवेश की पृष्ठभूमि में प्रशासनिक तंत्र की मर्यादाओं को उचित रूप से समझा जा सकता है। परिणामस्वरूप, इस पुस्तक में प्रशासनिक संरचना के साथ-साथ प्रशासनिक व्यवहार एवं संस्कृति पर भी बल दिया गया है।
आशा है, यह संकलन लोक प्रशासन के विद्यार्थियों एवं अध्यापकों तथा विवेकपूर्ण प्रशासकों के लिए रुचिकर व उपयोगी सिद्ध होगा।
Contents
I परिवेश एवं प्रकृति
1. परिवर्तन से पहली मुलाकात / विष्णु दत्त शर्मा
2. संसद, शासन और सुधार / राजेंद्र शंकर भट्ट
3. भारत के शासनिक अधिकारीः छवि, दृष्टि, दायित्व एवं भविष्य / राजेंद्र शंकर भट्ट
4. प्रतिनिध्यात्मक नौकरशाहीः राजनीतिक विकास का एक संकेत / एस.एन. झा
5. भारत में उच्चतर असैनिक सेवाओं की नौकरशाही संस्कृति / एस.एन. झा
6. शासन और उस पर नियन्त्रण / राजेंद्र शंकर भट्ट
7. प्रशासनिक प्रबन्ध में परिवर्तनों की प्राथमिकताएं / राजेंद्र शंकर भट्ट
8. कैसे हो प्रशासन का संस्थागत कायाकल्प? / आई.सी. श्रीवास्तव
II प्रशासनिक संवेदनशीलता
9. राजस्थान में उपभोक्ता संरक्षणः प्रगति के प्रतिमान / मीनाक्षी हूजा एवं शिव प्रसाद पालीवाल
10. महिला अधिकारों के प्रति चेतना / कविता ए. वर्मा एवं आशीष मिश्रा
11. महिलाओं का राजनीतिक सशक्तिकरणः क्यों ओर कैसे? / रमेश सी. श्रीवास्तव
12. सूचना के अधिकार का आकार / राजेंद्र शंकर भट्ट
13. सरकारी अधिकारी बनाम जन-प्रतिनिधि / सत्येंद्र नाथ
14. लोक प्रशासन और जन-सामान्य / विष्णु दत्त शर्मा
15. जनता एवं नियोजन व्यवस्था / राधामोहन खण्डेलवाल
16. विकास में जनभागीदारीः केरल के अनुभव / नरेश भार्गव
17. जनता एवं पुलिस सम्बन्धः विलम्ब कारकों के परिप्रेक्ष्य में / नीलम सूद
III विकेन्द्रित व्यवस्था
18. श्रेष्ठ प्रशासनः दर्शन एवं रणनीति / आई.सी. श्रीवास्तव
19. आज के युग में जिला प्रशासन एवं जिला कलेक्टर की भूमिका / मंजू राजपाल
20. न्याय में देरी और खर्च / जस्टिस बी.पी. बेरी
21. राजस्थान में लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरणः नए आयाम और नवाचार / एच.एस. महला
22. ग्राम प्रशासन का परिवर्तित स्वरूप / नन्दिता
23. भारतीय संविधान में ग्रामसभाः संस्थानीकरण व समस्याएं / पीसी. माथुर एवं जे.सी. गोविन्दम
About the Author / Editor
रमेश के. अरोड़ा ने उच्च शिक्षा राजस्थान विश्वविद्यालय तथा कैन्सस विश्वविद्यालय, संयुक्त राज्य अमेरिका से पूर्ण की। वे सिरेक्यूज़ विश्वविद्यालय (न्यूयाॅर्क) में वरिष्ठ फुलब्राइट फैलो भी रहें हैं। वे राजस्थान विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, लोक प्रशासन विभाग तथा डीन, समाज विज्ञान संकाय के रुप में भी कार्य कर चुके हैं। वर्तमान में वे हरिश्चन्द्र माथुर राजस्थान राज्य लोक प्रशासन संस्थान, जयपुर में विज़िटिंग प्रोफेसर तथा मैनेजमेंट डवलपमेंट एकेडमी के अध्यक्ष हैं। डाॅ. अरोड़ा ने चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन अथवा सम्पादन किया हैं। उन्होंने भारत व विश्व के प्रसिद्ध शिक्षण संस्थानों में व्याख्यान भी दिये हैं। वे प्रतिष्ठित पत्रिकाएं, प्रशासनिका तथा एडमिनिस्ट्रेटिव चेंज के सम्पादक हैं।
आभा जैन ने राजस्थान विश्वविद्यालय से वर्ष 1991 में लेखा एवं सांख्यिकी में पी.एच.डी. प्राप्त की। कुछ समय अध्यापन कार्य व विधि स्नातक पाठ्यक्रम करने के उपरान्त वर्ष 1997 में उनका चयन राजस्थान प्रशासनिक सेवा में हुआ। इन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका के वित्त सलाहकार संस्थान की मानद उपाधि प्राप्त हैं। डाॅ जैन वर्तमान में, हरिश्चन्द्र माथुर राजस्थान राज्य लोक प्रशासन संस्थान में उप निदेशक के पद पर कार्यरत हैं। वे प्रशासनिका पत्रिका के सम्पादकीय मण्डल की सदस्या हैं, तथा एडमिनिस्ट्रेशन फाॅर दि एम्पावरमेन्ट एण्ड वैलफेयर आॅफ विमेन की सह-सम्पादिका भी हैं।