About the Book
भारतीय समाज के प्रत्येक दृष्टिकोण से सबसे पिछड़े जनजातीय समाज के उत्थान के लिए स्वतंत्राता प्राप्ति के बाद क्रमबद्ध लगातार प्रयास किये जाते रहे हैं। भारत के दूरदृष्टा, कर्णधर एवं मनीषियों ने भारत के सर्वतोन्मुखी विकास हेतु जनजातियों के विकास की आवश्यकता को परखते हुये संविधान के भाग चार में नीति निर्देशक तत्वों तथा अन्य अनेक भागों में जनजातियों के उत्थान के लिए अनेक प्रावधानों का समावेश किया। इन संवैधानिक प्रावधानों की रूपरेखा के आलोक में इन वर्गों के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षणिक इत्यादि विकास के लिए अनेक नीतियाँ, योजनाएं एवं कार्यक्रम चलाये गये, परन्तु अपेक्षित सफलता फलीभूत नहीं हो पाई। इसका अनेक कारणों में सबसे प्रमुख कारण इन वर्गों में राजनीतिक सहभागिता एवं जागरूकता का अभाव है। इस तारतम्यता में सुव्यवस्थित पंचायत राज की स्थापना हेतु 73वें संविधान संशोधन अधिनियम 24 अप्रैल 1993 से प्रवृत्त किया गया। मध्य प्रदेश भारत का पहला राज्य है, जिसने 73वें संविधन संशोधन अधिनियम के सानिध्य में 24 जनवरी 1994 मध्य प्रदेश पंचायत राज अधिनियम, 1993 लागू किया। इस अधिनियम द्वारा पंचायत राज में जनजातियों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए निहित प्रावधानों के तहत निश्चित रूप से जनजातियों की राजनीतिक सहभागिता एवं जागरूकता में अभिकल्पित वृद्धि हुई है। इस पुस्तक में पंचायत राज में जनजातियों की सहभागिता की सुनिश्चितता से इन वर्गों के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षणिक इत्यादि समग्र सन्दर्भ में आये वास्तविक बदलाव एवं विभिन्न आयामों का अध्ययन तथा सूक्ष्म एवं विशद विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक समाज विज्ञान में अभिरूचि रखने वाले चिन्तकों, शिक्षाविदों, नीति निर्माताओं, प्रंशसकों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों के लिये आवश्यक, उपयोगी एवं सार्थक सिद्ध होगी।
Contents
1. पंचायती राज व्यवस्था का सैद्धान्तिक परिप्रेक्ष्य
2. मध्य प्रदेश में पंचायती राज
3. अनुसंधान प्रारूप
4. कटनी जिले का परिचय
5. उत्तरदाताओं की सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
6. उत्तरदाताओं का पंचायती राज क्रियाकलाप सम्बन्धी दृष्टिकोण
7. सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर पंचायती राज का प्रभाव
8. निष्कर्ष: जनजातीय समाज में सामाजिक-राजनीतिक बदलाव
About the Author / Editor
अरूण कुमार वर्तमान में शासकीय तिलक स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कटनी, मध्य प्रदेश में राजनीति विज्ञान के सहायक प्राध्यापक हैं। पंचायती राज, महिला एवं दलित मुद्दों से संबंधित आपकी अनेक पुस्तकें तथा शोध पत्र राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुये हैं। दलित मुद्दों पर कार्य के लिये इन्हें अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।